केशकाल.! बस्तर अंचल की आस्था - और परंपरा का अद्भुत नजारा शनिवार को केशकाल, मांझीनगढ़ और कारी पानी-खुर्सी घाट में देखने को मिला। यहां हर साल की तरह इस बार भी देवी-देवताओं का जातरा और अदालत लगी, जिसमें इंसानों की तरह देवी-देवताओं पर भी आरोप-प्रत्यारोप होते हैं. अनुमानित-2000 आन्गा देव आये और 30 लोगो फैसले सुना कर सजा दी गयी.
कहा जाता है.. कि इस परंपरा की शुरुआत बस्तर राजघराने के समय हुई थी। जातरा के दिन तीनों स्थानों पर दूर-दराज गांवों से देवी-देवता का विशेष परंपरा अनुसार मां भंगाराम को अब बिना सींग का काला भेड़ चढ़ाया जाता है।.. मांझीनगढ़ की मावली देवी के पुत्र सोनकुंवर को सफेद बकरा और सफेद मुर्गा अर्पित होता है। अपने पुजारियों मांझी-मुखियाओं और भक्तों के साथ पहुंचते हैं। हजारों की भीड़ जब पहाड़ों और जंगलों के बीच उमड़ती है, तो आस्था का अद्भुत माहौल बन जाता है।
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दुनिया का यह एक मात्र- देवी-देवताओं की अदालत में इंसानी अदालत की तरह सुनवाई होती है
फरियादी इंसान होता है, जबकि आरोपी के रूप में देवी-देवता पेश होते हैं। अपराध सिद्ध न होने पर बरी कर दिया जाता है और दोषी पाए जाने पर सजाएं दी जाती है-कभी पूजा-पाठ से वंचित रहना पड़ता है, कभी कारावास जैसी सजा,और कभी मृत्यु दंड भी यह आयोजन बस्तर की सांस्कृतिक धरोहर और लोक आस्था सेवा में चढ़ाते हैं कई तरह के भोग जातरा में गांव वासी "सेवा" और "रवाना" लेकर आते हैं। सेवा में चावल, तेल, हल्दी, धूप-फूल चढाए जाते हैं, जबकि रवाना में मुर्गी का बच्चा आदि होता है जिसे बुराई और अनिष्टकारी शक्तियों को दूर करने के प्रतीक के रूप में अर्पित किया जाता है। महिलाओं का प्रवेश जातरा के दिन वर्जित रहता है। माना जाता है कि यह परंपरा उनकी सुरक्षा को ध्यान में रखकर बनाई गई है,ताकि अनिष्टकारी शक्तियों का असर उन पर न पड़े।
